Tuesday 14 May 2013

मधुशाला


हर सांस यहां अटकी भटकी
फिर भी प्यारी यह मधुशाला
कितने जीवन बरबाद हुए
आबाद रही पर मधुशाला

साकी के नयनों से छलकी
चमकी दमकी सी मधुशाला
पत्नी का वैभव चूर हुआ
जब रंग चढ़ी ये मधुशाला

बिसरी बच्चों की भूख प्यास
बस याद रही यह मधुशाला
मां बाप लगे दुश्मन जैसे
अहसास बनी यह मधुशाला

रिश्ते नाते सब छूट गए
जब साथ चली ये मधुशाला
दुनिया से भी वैराग हुआ
मन प्राण बसी यह मधुशाला

घर बार गया धन दौलत भी
सम्मान ले गयी मधुशाला
कुछ ऐसा इसका नशा चढ़ा
यह देह पी गयी मघुशाला
              - बृजेश नीरज

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