Wednesday 16 December 2015

कहाँ के थे

थोड़ा बरस के थम गए वो बादल कहाँ के थे
आँखों में नमी शेष है आँसू यहाँ पे थे

इस माहौल को देखते सोचता हूँ एक बात
आदम यहां हैं तो अहरमन कहां पे थे

कई बरस हो गए कोई शोर नहीं हुआ
लगता है क्या आपको गांधी यहां पे थे

अब तो मिसालें भी न रहीं कुछ कहने के लिए

बातों को यूं समझ लें वो समझदार कहां के थे

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