अम्बे तेरी वंदना,
करता हूँ दिन-रात
मिल जाए मुझको
जगह, चरणों में हे मात
चरणों में हे मात,
सदा तेरे गुण गाऊँ
चरण-कमल-रज मात,
नित्य ही शीश लगाऊँ
अर्पित हैं
मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे
शब्दों को दो
अर्थ, मात मेरी हे अम्बे
घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।
ब्लागर
I am very thankful to you for providing such a great information. It is simple but very accurate information.
ReplyDelete